हर इंसान अपनी ज़िंदगी की किताब का लेखक तो है, लेकिन पाठक नहीं। हम अपने दिनों को शब्दों की तरह लिखते जाते हैं...कभी हड़बड़ी में, कभी भावनाओं के उफान में, तो कभी थकान के बोझ तले। पर अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि लिखना ही पर्याप्त नहीं है, पढ़ना भी ज़रूरी है।
क्योंकि जब हम अपने ही पन्नों को पलटकर देखते हैं, तभी समझ आता है कि कहाँ हमने जल्दबाज़ी में अधूरा छोड़ दिया, कहाँ बिना सोचे शब्दों का बोझ भर दिया, और कहाँ एक छोटी-सी लकीर पूरी कहानी बदल सकती थी।
जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि लोग भविष्य के पन्नों को लेकर चिंतित रहते हैं, पर अपने ही लिखे अतीत को पढ़ने की फुर्सत नहीं निकालते।
अगर हम ठहरकर अपने लिखे को समझना सीख लें, तो शायद अगला अध्याय अधिक स्पष्ट, अधिक सधा हुआ और अधिक सार्थक लिखा जाए।
लेखन तो सब करते हैं, पर पाठक वही बनता है जो आत्मा के भीतर झाँकने की हिम्मत रखता है...!!
#smile_please
@muskurate_raho